
Janaki Ammal: Pratham Bhartiya Mahila Botanists
Janaki Ammal एक प्रसिद्ध वनस्पति विज्ञानी और पादप साइटोलॉजिस्ट थी जिन्होंने आनुवांशिकी, विकासवाद, फाइटोजियोग्राफी और एथनोबॉटनी में महत्वपूर्ण योगदान दिया. इनका पूरा नाम Edavaleth Kakkat Janaki Ammal [एडावलेथ कक्कट जानकी अम्मल] था.
जानकी अम्मल [Janaki Ammal] का जन्म 4 नवंबर, 1897 को एक मध्यम वर्गीय परिवार में केरल के टेलिचेरी [Tellichery] में हुआ था. अम्मल के पिता उस समय मद्रास प्रेसीडेंसी में एक उप-न्यायाधीश थे। वह छह भाई और पाँच बहनें थीं।
Janaki Ammal Biography
शिक्षा | Educations of Janaki Ammal
टेलिचेरी में प्रारंभिक स्कूली शिक्षा प्राप्त करने के बाद, मद्रास में रहने लगीं, जहाँ उन्होंने आगे की पढाई के लिए सन् 1921 में क्वीन मैरी कॉलेज से स्नातक की डिग्री तथा प्रेसीडेंसी कॉलेज से बॉटनी में अपनी ऑनर्स की डिग्री प्राप्त की.
स्नातक पूर्ण करने के बाद महिला क्रिश्चियन कॉलेज मद्रास में अध्यापन कार्य करने लगी. सन् 1925 में संयुक्त राज्य अमेरिका के यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिशिगन से एक बार्बोर स्कॉलर के रूप में अपनी मास्टर डिग्री प्राप्त की.
भारत लौटकर, महिला क्रिश्चियन कॉलेज में अध्यापन कार्य जारी रखी, लेकिन सन् 1931 में पुनः यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिशिगन में बतौर पहली बार्बोर फेलो दाखिला लिया, और D. Sc. की डिग्री प्राप्त की.
नौकरी | Jobs and Duty profiles of Janaki Ammal
वापस आकर सन् 1932-34 के दौरान त्रिवेंद्रम के महाराजा कॉलेज ऑफ साइंस में वनस्पति विज्ञान के प्रोफेसर के रूप में अपनी सेवाएँ दी. तत्पश्चात् सन् 1934-1939 के दौरान कोयंबटूर स्थित गन्ना प्रजनन संस्थान में जेनेटिसिस्ट [Geneticist] के रूप में कार्य किया और सन् 1940 में वह इंग्लैंड चली गईं.
सन् 1940-45 तक लंदन के जॉन इंस हॉर्टिकल्चर इंस्टीट्यूशन में असिस्टेंट साइटोलॉजिस्ट [Assistant Cytologist] के रूप में कार्यरत थी और 1945–51 तक विजली [Wisley, England] में रॉयल हॉर्टिकल्चरल सोसाइटी में साइटोलॉजिस्ट [Cytologist] के रूप में काम किया.
भारत के तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा बॉटनिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया (BSI) के पुनर्गठन के लिए एक विशेष अधिकारी के रूप में कार्यभार ग्रहण करने के लिए जानकी अम्मल को आमंत्रित किया गया था और वह 1951 में भारत लौट आयी.

तब से BSI के पुनर्गठन के अलावा जानकी अम्मल [Ammal] केंद्रीय वनस्पति प्रयोगशाला, इलाहाबाद और क्षेत्रीय अनुसंधान प्रयोगशाला, कश्मीर में प्रमुख और विशेष अधिकारी के रूप में कार्यरत रहीं.
भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र, ट्रॉम्बे में भी एक संक्षिप्त समय के लिए काम किया और फिर नवंबर 1970 में मद्रास विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग में सेंटर फॉर एडवांस स्टडी में एमेरिटस साइंटिस्ट [Emeritus Scientist] के रूप में काम करते हुए मद्रास में बस गए.
वह फरवरी 1984 में उनके निधन तक मद्रास के पास मदुरावल में सेंटर्स फील्ड प्रयोगशाला [Centre’s Field Laboratory] में कार्यरत रही.
प्रमुख अवार्ड | Janaki Ammal award
उनके नाम पर निम्नलिखित प्रमुख अवार्ड और सम्मान शामिल हैं…
- 1935 में अम्मल को फेलो ऑफ़ द इंडियन एकेडमी ऑफ साइंसेज चुना गया [जिसकी स्थापना सर सीवी रमन ने उसी वर्ष की थी].
- मिशिगन विश्वविद्यालय ने उन्हें 1956 में एक मानद एलएलडी [an honorary LLD] से सम्मानित किया.
- भारत सरकार ने 1957 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया.
- पर्यावरण और वानिकी मंत्रालय भारत सरकार ने उनके नाम पर 2000 में टैक्सोनॉमी के राष्ट्रीय पुरस्कार की स्थापना की.
महत्वपूर्ण शोध | Janaki Ammal invention
पादप प्रजनन आधारित शोध | Plant Breeding Based Research
पिछली शताब्दी के शुरुआती दशकों में आनुवांशिकी में काफ़ी अग्रणी काम देखा गया, विशेष रूप से गेहूं और गन्ने पर आधारित. कोयंबटूर स्थित गन्ना प्रजनन संस्थान [Sugarcane Breeding Institute at Coimbatore] में सी ए बार्बर [C A Barber] और टी एस वेंकटरमन [T S Venkataraman] ने गन्ना प्रजनन में अनुसंधान शुरू किया.
वेंकटरामन ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध कोयम्बटूर के गन्ने जैसे कि Co 419 को सूखे और बिमारीरोधी के गुणों के साथ विकसित किया था. इन Co किस्मों को भारत के सभी भागों में उगाया जाता था और अन्य देशों जहाँ गन्ना एक महत्वपूर्ण फसल थी में भी खेती के लिए पसंद किया जाता था.
इन्ही परिदृश्य के कारण अम्मल ने त्रिवेंद्रम में अपना शिक्षण पद छोड़ दिया और कोयंबटूर के इस संस्थान में शामिल हो गई. अम्मल ने कई इंटरजेनरिक हाइब्रिड [intergeneric hybrids] बनाए जैसे- Saccharum x Zea, Saccharum x Erianthus, Saccharum x Imperata and Saccharum x Sorghum.
अम्मल का इस संस्थान में Saccharum officinarum (गन्ना) के साइटोजेनेटिक्स [cytogenetic] तथा गन्ने और इससे संबंधित घास प्रजातियों के interspecific और intergeneric संकरों [hybrids] पर शोध जारी रहा.
औषधीय पौधों और एथनोबॉटनी पर शोध | Medicinal and Ethanobotany Based Research

इंग्लैंड में बिताए गए वर्षों (1939-1950) के दौरान, उन्होंने बगीचे के पौधों की एक विस्तृत श्रृंखला के गुणसूत्रों का अध्ययन किया था. गुणसूत्र संख्याओं और प्लोइड [ploidy] पर किए गए अध्ययनों ने प्रजातियों और किस्मों के विकास पर प्रकाश डाला.
भारत लौट आने पर उन्होंने पोलीप्लोइड और पौधों के विकास पर ध्यान केंद्रित किया साथ ही साथ सबसे महत्वपूर्ण जेनरा [genera] Solanum, Datura, Mentha, Cymbopogon और Dioscorea पर काम किया. इसके अलावा बहुत सारे औषधीय पौधों पर भी शोध कार्य किया गया.
सेवानिवृत्ति के बाद भी अम्मल ने बेरोकटोक शोध कार्य जारी रखा, औषधीय पौधों और एथनोबॉटनी पर विशेष ध्यान दिया. समय-समय पर वह अपने शोध के मूल निष्कर्षों को प्रकाशित करती रही.
सेंटर फॉर एडवांसड स्टडी फील्ड लेबोरेटरी [Centre for Advanced Study Field Laboratory] में रह कर काम करती थी. उसने बड़े उत्साह और समर्पण के साथ औषधीय पौधों का एक बगीचा विकसित किया.
लेख स्त्रोत | Article Sources
S Kedharnath, Edavaleth Kakkat Janaki Ammal (1897–1984)
Biographical Memoirs of Fellows of the Indian National Science Academy, 13 page- 90–101.
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